Tuesday, February 16, 2010

बखर साहित्य

बखर साहित्य

प्राचीन मराठी साहित्य प्रधानत: पद्यमय होने के कारण उसमें गद्य का भाग बहुत छोटा होना स्वाभाविक है। इसमें बखर साहित्य ऐतिहासिक दृष्टि से पूर्णतया साधार न होने पर भी उपेक्षणीय नहीं। कृष्णाजी शामराव की लिखी भाऊ साहेब की बखर, कृष्णाजी अनंत सभासद लिखित शिव छत्रपति की बखर, सोवनी द्वारा लिखी पेशवाओं की बखर इत्यादि बखरें प्राचीन मराठी गद्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। इसी प्रकार ऐतिहासिक कालखंड के राजपुरुषों के जो हजारों पत्र प्रकाशित हुए हैं, उनमें भी अनेक साहित्यिक गुणों का मनोरम दर्शन होता है।




अंग्रेजों के पूर्वकालीन साहित्य की सीमा यहाँ समाप्त होती है और एक नए युग का प्रारंभ होता है। इस समय के साहित्य की प्रेरणा प्राय: धर्मजीवन के लिये ही थी, अत: इस दीर्घ कालखंड में निर्मित साहित्य अत्यंत विशद होने पर भी अधिकांश एक ही सा है। काव्यों के विषय, आध्यात्मिक विचार, पौराणिक कथाएँ तथा ऐसी ही अन्य बातें थीं जो थोड़े से हेरफेर के साथ पुन: पुन: आई सी मालूम होती हैं। समय के हेरफेर से तथा व्यक्ति के बदलने से वर्णन की पद्धति बदली परंतु साहित्य में एक ही परमार्थ प्रवाह बराबर बहता रहा।

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